ना विषय बदलेंगे ,ना सरोकार बदलेंगे।
यही जो चूमते हैं दर,यही 'सरकार' बदलेंगें ।।
वही कुर्सियां होगी , होंगी वही ज़िल्लतें सारी/
नीति वही होगी पर देखना ,कैसे ये नीयत का आधार बदलेंगे।।
प्रचंड बहुमत का नशा जब ,छाएगा इनके जेहन में।
यही
देखना कैसे चुपके से ,सभ्य व्यवहार बदलेंगे।।
समन्दर में दूर जब इनकी,सत्ता की नाव पंहुचेगी ।
बैठे है जो इसमें विश्वासपात्र ,यही पतवार बदलेंगे।।
बदलना इतिहास का इतना भी ,आसां नही है लेकिन।
'कमलेश,देखना है ये,
कैसे इस सहरा की बहार बदलेंगे।।
#Kamlesh Verma
3 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का बुलबुला - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (14-05-2017) को "माँ है अनुपम" (चर्चा अंक-2970) ) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
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