तुम्हारी नजरों को...!!!
तू समझे न मेरे प्यार को ,तो मेरा क्या कसूर ,
कोशिस तो की बहुत, पर समझे न हजूर ?
आँखें तो देती रहीं ,हमेशा पैगाम आपको ,
तुम्हारी नजरों को लगा ,मुझ पे छाया है सरूर ।
ऐसी भी क्या बेरूखी ,मुझसे है आपको ,
आँखों ही आँखों में सोचते ,चले गये हो कितनी दूर ।
कमलेश बस इल्तिजा है,मेरी इक आप से ,
बस आते जाते इक नजर ,इधर डालो जरूर ॥
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1 comments:
आपका प्यार आपके जज्बात को सम सके, यही कामना है। इस सुंदर गजल के लिए बधाई।
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परा मनोविज्ञान- यानि की अलौकिक बातों का विज्ञान।
ओबामा जी, 75 अरब डालर नहीं, सिर्फ 70 डॉलर में लादेन से निपटिए।
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