बदली -बदली सी फिजा ,लग रही है हिंदुस्तान की ,
कुछ ज्यादा ही कीमत ,बढ़ गयी है सच्चे इमान की ,
आसन नही है चलना ,सत्य -पथ की ये राहें ,
तू राही चलता चल ,हो कितनी ही बाधाएँ ,
मिल जाएगी तुझको तेरी मंजिल ,
हर भारतवासी मन कहता है ,
जिस रावण से तू हुआ त्रस्त
,वो इनके बीच में ही रहता है ।
आएँगी तेरी डगर में छल-प्रपंच की दीवारें ,
तनी मिलेंगी पग-पग-,षड्यंत्रों की तलवारें ।
हर दिल तेरी फतह की खातिर ,तन-मन से तेरे साथ है ।
तू बना उम्मीद की रेखा ,जो समझे अपने को अनाथ हैं।
'कमलेश 'चला चले इसी वेग से ,''अन्ना''अब बन ये तूफ़ान घना ,
बहुत वक्त के बाद 'शायद' अब ये असली हिंदुस्तान बना ॥
2 comments:
कमलेश 'चला चले इसी वेग से ,''अन्ना''अब बन ये तूफ़ान घना ,
बहुत वक्त के बाद 'शायद' अब ये असली हिंदुस्तान बना
-सब को एक साथ आता देख एक उम्मीद की किरण दिखती है.
अच्छी रचना.
Desh bhakti ke bhaw jagatee achchi rachana.
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