मुझ नाचीज को मिला ये, प्यार कैसा है ।
जो न हो मन को ,ऐतबार जैसा है ।
चाँद आ गया हो मुट्ठी में ,
हुआ सपना साकार जैसा है।
सोचा भी नही था, कभी ऐसा भी होगा ।
कल्पना में अब भी सूक्ष्म आकार जैसा है ।
हकीकत में हुई है,स्नेह की वर्षा ,
मेरे लिये ये प्यार खुमार जैसा है ।
परिस्करण ,उत्साहवर्धन ले जावूँ आपका साथ में ,
आप लोगों की तरफ से ,उपहार जैसा है ॥
काश रह पाता ''कमलेश'' आपके संग ,
गुनी जनों का सानिध्य पुरस्कार जैसा है ॥
4 comments:
परिस्करण ,उत्साहवर्धन ले जावूँ आपका साथ में ,
आप लोगों की तरफ से ,उपहार जैसा है ॥
-सही है, यही तो उपहार है!! उम्दा!!
सपना हुआ साकार ...चाँद आया मुट्ठी में ...
बहुत बधाई ..!!
काश रह पाता ''कमलेश'' आपके संग ,
गुनी जनों का सानिध्य पुरस्कार जैसा है ॥
बढ़िया रचना वर्मा साहब !
मुझ नाचीज को मिला ये, प्यार कैसा है ।
जो न हो मन को ,ऐतबार जैसा है ।
nice
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