कौन सी वो बात थी?
कौन सी वो बात थी?जो बताई ना गयी ,
कोशिशें लाख हुईपर छिपाई न गयी ।
गर रख पाते !!पर्देदारी अपनी मुहब्बत की ,
ये रस्म भी उनसे जरा भी निभाई न गयी ।
रस्में -महब्बत हौसले ,का काम है ,
दीवारे-दुनिया हमसे, गिराई न गयी ,
दुनिया ख़ुद- ब -ख़ुद मान लेती ,मेरी चाहत को ,
पर''कमलेश'' कुरबाने -मुहब्बत ,दिखायी न गयी ॥
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3 comments:
bahut khoob...
वर्माजी
बहुत ही भावपूर्ण रचना .
अच्छी कविता..
हैपी ब्लॉगिंग
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